हम कथा सुनाते हैं राम सकल गुण नाम की || Hum Katha Sunate Hai Ram Sakal Gun Dham ki || Maithili Thakur, Ayachi Thakur, Rishav Thakur

2020-06-25 22

हम कथा सुनाते राम सकल गुण ग्राम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुण ग्राम की

ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की .2

रामभद्र के सभी वंशधर
वचन प्रयान धरम धुरंधर

कहे उनकी कथा ये भूमि अयोध्या धाम की
यही जनम भूमि है परुषोत्तम गुण राम की
यही जनम भूमि है परुषोत्तम गुण राम की

ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

चैत्र शुक्ल नवमी तिथि आयी मध्य दिवस में राम को लायी
बनकर कौशल्या के लाला
प्रकट भये हरी परम कृपाला

राम के संग जो भ्राता अाये
लखन , भरत , शत्रुघन कहाये
गुरु वशिष्ठ से चारो भाई
अल्पकाल विद्या सब पायी

मुनिवर विश्वामित्र पधारे, मांगे दसरथ के धृग तारे
बोले राम लखन निधिया है हमारे काम के

हम कथा सुनाते राम सकल गुण ग्राम की

सब के हृदय अधीर कर भरकर कश में तीर

चल दिए विश्वामित्र संग लखन और रधुवीर
प्रथम ही राम तड़िका मारी की मुनि आश्रम की रखवाली
दिन भर बाद मरीछ को मार दस योजन किये सागर पारा
व्यथिक अहिल्या का किया पद रज से कल्याण
पहुंचे प्रभुवर जनकपुर करके गंगा स्नान

सिया का भव्य स्वयंवर हैं , सिया का भव्य स्वयंवर हैं
सब की दृष्टि में नाम राम का सबसे ऊपर हैं
सिया का भव्य स्वयंवर है

जनकराज का कठिन प्रण कारण रहे सुनाये
भंग करे जो शिवधनुष ले वाही सिय को पाये

विश्वामित्र का इंगित पाया सहज राम ने धनुष उठाया
भेद किसी को हुआ न ज्ञात
कब शिवधनुष को तोडा रगुनाथ
निकट वृक्ष के आ गए वेळी
सिय जयमाल राम उर मेलि

सुन्दर सास्वत अभिनव जोड़ी
जो उपमा दी जाए सो थोड़ी
करे दोनों धूमिल कांति कोटि रतिकाम की

हम कथा सुनाते पुरुषोत्तम गुण ग्राम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

सब को डुबोकर राम के रास में , लव कुश ने किये जान मन बस में
आगे कथा बढ़ाते जाए जो कुछ घटा सुनाते जाए

कैसे हुयी विधिना की दृष्टि वक्र सफल हुआ कैकयी का वो चक्र
राम लखन सीता का वनगमन , वियोग में दसरथ मरण
चित्रकूट और पंचवटी जहा जहा जो जो घटना घाटी
सविस्तार सब कथा सुनाते लव कुश रुके अयोध्या आके

गयाविजय का पर्व मनाया राम को अवध नरेश बनाया
नियति काल और प्रजा ने मिलकर ऐसा जाल बिछाया
दो अविभाज्य आत्माओ पर समय विछोभ का आया

अवध के वासी कैसे अत्याचारी राम सिया के मध्य राखी संदेह की एक चिंगारी कलंकित कर दी निष्कलंक देहनारी
चिंतित सिया आये न कोई आंच पति सम्मान पर
नीरव रहे महाराज भी सीता के वन प्रस्थान पर
ममता मई माँओ के नाते पर भी पाला पड़ गया
गुरुदेव गुरुजन जैसे सबके मुख पर ताला पड़ गया

सिय को लखन बिठा के रथ में , छोड़ आये कांटो के पथ में
ज्ञान चेतना नगर वासियो ने जब सब खो डाले
तब सहाय सिया के एक महर्षि बने रखवाले

वाल्मीकि जी मिल गए सिय को जनक सामान पुत्री वाट वात्सल्य देह आश्रम में दिया स्थान
दिव्य दीप देवी ने जलाये राम के दो सूत सिय ने द्याहे

नंगे पाओ नदिया से भर के लाती हैं नीर
नीर से विषाद के नयन भीगती हैं

लकडिया काटती हैं धन कूट छांटती हैं
विधिना के बाड़ सह सह मुस्काती हैं

कर्त्तव्य भावना के जग के दो पाटो में वो बिना प्रतिवाद किये पिसती ही जाती हैं
ऐसे में भी पुत्रो को सीखके सरे संस्कार स्वावलम्बी स्वाभिमानी सबल बनती है
व्रत उपवास पूजा अनुष्ठान करती हैं प्रतिपल नाम बस राम का ही लेती हैं

जिनकी तानो ने किया ह्रदय विधिं माँ का उनको भी सदा शुभकामना ही देती हैं
देवी पे जो आपदा हैं विधि की विडम्बना ,या प्रजा की उठायी हुई आंधी की रेती हैं
जगत की नैया की खिवैया की हैं रानी पर स्वयं की नैया सिया स्वयं ही झेत